पटना। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना 3 अक्टूबर 2016 को हुई थी। इसमें सबसे पहले स्थायी रूप से सेवा देने वाले लगभग 30 असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किए गए थे, जिनका साक्षात्कार के लिए चयन लिखित परीक्षा के आधार पर हुआ था। यह देश के उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक था, जहां साक्षात्कार के लिए चयन लिखित परीक्षा के आधार पर किया गया था।
यूजीसी के नियमानुसार, लेवल 10 से लेवल 11 में प्रमोशन के लिए 4 वर्षों का अनुभव, एक ओरिएंटेशन, एक रिफ्रेशर कोर्स, और यूजीसी लिस्टेड जर्नल में एक शोधपत्र प्रकाशित होना चाहिए। विश्वविद्यालय के अधिकतर असिस्टेंट प्रोफेसर यूजीसी की इन निर्धारित योग्यताओं को पूरा करते हैं, लेकिन अब तक उनका प्रमोशन नहीं हुआ है। इसके विपरीत, बिहार के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इनसे बाद में नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर लेवल 10 से लेवल 11 में प्रमोट हो चुके हैं।
यहां तक कि मोतिहारी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कई विवादित एसोसिएट प्रोफेसर, जिनकी योग्यता और अनुभव प्रमाण पत्र यूजीसी के मानदंडों के अनुसार नहीं हैं, उनका भी प्रमोशन 2019 में तत्कालीन और विवादित कुलपति संजीव शर्मा द्वारा प्रोफेसर पद पर किया जा चुका है। यह वही संजीव शर्मा थे, जिनकी कुलपति पद पर नियुक्ति विजिलेंस जांच की तथ्य को छिपाकर की गई थी। उन पर IPC की धारा 420, महिला उत्पीड़न, और अन्य अकादमिक घोटालों के मामले दर्ज थे।
संजीव शर्मा ने मोतिहारी केंद्रीय विश्वविद्यालय में बिना एक्जीक्यूटिव काउंसिल की मंजूरी के 50 से अधिक अवैध नियुक्तियां कीं। इसके अलावा, उन्होंने अवैध एकेडमिक काउंसिल और 15 से अधिक अवैध केंद्र भी खोले थे, जिसके बारे में शिक्षा मंत्रालय ने उनसे पूछताछ की थी। विश्वविद्यालय के चांसलर पद्मश्री महेश शर्मा और तत्कालीन एक्जीक्यूटिव काउंसिल की सदस्य प्रोफेसर किरण घई ने भी माननीय राष्ट्रपति महोदय, शिक्षा मंत्री केंद्र सरकार तथा शिक्षा मंत्रालय को प्रोफेसर संजीव शर्मा द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के बारे में शिकायत लिखकर अवगत कराया था।
हास्यास्पद है कि पूर्व कुलपति अरविंद अग्रवाल द्वारा कराए गए लिखित परीक्षा में जो उम्मीदवार चयनित उम्मीदवारों से आधे मार्क्स लाये थे, वे दो साल बाद प्रोफेसर संजीव शर्मा द्वारा एसोसिएट प्रोफेसर पद पर चयनित कर लिए गए। 2017 में नॉन-टीचिंग स्टाफ की बहाली हुई, जिसमें दिनेश हुड्डा और शैलेंद्र सिंह चौहान की विवादित नियुक्ति यूजीसी के नियमों की अवहेलना करते हुए की गई। लेकिन पिछले महीने वर्तमान कुलपति प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव ने आनन-फानन में नॉन-टीचिंग स्टाफ का प्रमोशन कर दिया, जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर की बैक एक्सपीरियंस और प्रमोशन की प्रक्रिया अधर में लटकी हुई है।
कई असिस्टेंट प्रोफेसर, जैसे डॉ. पंकज कुमार सिंह, जो पहले छत्तीसगढ़ के सरकारी कॉलेज में पदस्थापित थे, आज भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वहीं, कुछ लोग जिन्हें मात्र 100 रुपये प्रति क्लास के हिसाब से पढ़ाने का अनुभव है, वे प्रोफेसर बन बैठे हैं। हाल ही में दिल्ली लोकपाल का एक निर्णय आया है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि विश्वविद्यालय ने खुद मंत्रालय को यह रिपोर्ट भेजी है कि दो प्रोफेसरों की नियुक्ति गलत तरीके से हुई है। सूत्रों के मुताबिक, ये फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद एक प्रोफेसर दूसरे विश्विद्यालय में चलते बने। साथ हीं वर्तमान कुलपति भी संजीव शर्मा की तरह पुनः यूजीसी और विश्विद्यालय के ऑर्डिनेंस का उल्लंघन कर विश्विद्यालय का एकेडमिक और एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल का पिछले साल गठन किये हैं।