बिहार के बांका जिले में बीपीएससी के माध्यम से नियुक्त शिक्षकों की नौकरी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। डीईओ (जिला शिक्षा अधिकारी) ने जिले के सभी बीईओ (ब्लॉक शिक्षा अधिकारी) को पत्र लिखकर बीपीएससी द्वारा नियुक्त दोनों चरणों के सभी 3000 शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच का आदेश दिया है। निर्देश के अनुसार, तीन दिनों के भीतर सभी शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की फोटो कॉपी जिला कार्यालय में जमा करनी होगी। इन प्रमाण पत्रों की गहन जांच की जाएगी, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
महिला आरक्षण पर सवाल
जांच में पाया गया है कि बड़ी संख्या में ऐसी महिला शिक्षक नियुक्त हुई हैं, जो बिहार से बाहर की रहने वाली हैं। इन शिक्षकों ने महिला आरक्षण का लाभ लेकर बीपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण की और नियुक्ति पाई। हालांकि, उनकी पात्रता पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि यह आरक्षण केवल बिहार की महिलाओं के लिए होना चाहिए था।
योग्यता पर भी संदेह
कुछ शिक्षकों पर आरोप है कि वे आवश्यक योग्यता पूरी किए बिना ही नियुक्त हो गए हैं। 55% से कम अंक लाने वाली महिला अभ्यर्थियों को भी नियुक्त किया गया है, जबकि योग्यता मानदंडों में स्पष्ट रूप से 55% या उससे अधिक अंक होना अनिवार्य है। इसके अलावा, दर्जनभर शिक्षक ऐसे भी पाए गए हैं, जिनके पास संबंधित विषय में डिग्री नहीं है, लेकिन वे संबंधित विषयों के शिक्षक के रूप में काम कर रहे हैं।
टीईटी/एसटीईटी और बीपीएससी विवाद
जांच में यह भी पाया गया है कि कुछ शिक्षक 2023 में टीईटी या एसटीईटी पास करने के बाद भी पहले बीपीएससी परीक्षा देकर शिक्षक बन गए। यह स्थिति बीपीएससी परीक्षा की प्रक्रिया और पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती है।
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संभावित कार्रवाई
बांका के स्थापना डीपीओ संजय कुमार ने स्पष्ट किया है कि सभी शिक्षकों के प्रमाण पत्र मंगवाए गए हैं और बीईओ को इन्हें तीन दिनों में जिला कार्यालय में जमा करने का निर्देश दिया गया है। जांच के बाद योग्यता मानदंडों को पूरा न करने वाले शिक्षकों की सेवा समाप्ति की कार्रवाई की जाएगी।
यह स्थिति बिहार की शिक्षा प्रणाली और नियुक्ति प्रक्रियाओं पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है। अगर जांच में दोष सिद्ध होते हैं, तो 3000 शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। इस कार्रवाई का उद्देश्य शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और योग्य बनाने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।
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